رباعی شمارهی ۳۴۹
| این ثانیههای عمر ما رفت که رفت | |
| آرام و خموش و بیصدا رفت که رفت |
| هر لحظهی آن بجای سرمستی و شور | |
| بیهوده به غصّه در فنا رفت که رفت |
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